उन्नत विधियों के अनुसार करें कृषि एवं पशुपालन कार्य:

अक्स न्यूज लाइन नाहन,16 जनवरी :
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जनवरी महीने के दूसरे पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्धित कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में मार्गदर्शिका जारी की है जिसे अपनाकर किसान लाभान्वित हो सकते हैं।
गेहूँ,:
सिंचित गेहूँ की 30 से 35 दिन की फसल में जहां खरपतवारों में 2-3 पत्तियां आ गई हों, संकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए वेस्टा (मेटसल्फयूरॅान मिथाईल 20 डव्ल्यू पी. + क्लोडिनाफॉप प्रोपार्जिल 15 डव्ल्यू पी.) 16 ग्राम प्रति 30 लीटर पानी में मिलाकर खेतों में छिड़काव करें। अगर फसल में सिर्फ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार हों तो उसके नियंत्रण के लिए 2,4-डी की 50 ग्राम मात्रा या मेटसल्फयूरॉन मिथाईल 20 डव्ल्यू पी. 80 मिली ग्राम को 30 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव के लिए फ्लैट फैन नोजल का इस्तेमाल करें। गेहूँ के साथ अगर चौड़ी पत्ती वाली फसल की खेती की गयी हो तो 2,4-डी या मेटसल्फयूरॉन मिथाईल का प्रयोग न करें। छिड़काव से दो-तीन दिन पहले एक हल्की सिंचाई करने के बाद ही छिड़काव करें।
सब्ज़ी उत्पादन:
निचले पर्वतीय क्षेत्र जहां सिंचाई की सुविधा है मूली की बिजाई की जा सकती है। बिजाई के लिए पूसा हिमानी किस्म जोकि 50 से 55 दिनों में तैयार हो जाती है का चयन कर सकते हैं। मूली की बिजाई हल्की मिटटी में समतल क्यारी में अन्यथा भारी मिटटी में मेड़ बनाकर 15-20 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।
मध्यवर्ती क्षेत्रों में आलू की बुआई के लिए कुफरी ज्योति, कुफरी गिरीराज, कुफरी चन्द्रमुखी व कुफरी हिमालिनी इत्यादि किस्म का चयन करें। बुआई के लिए स्वस्थ, रोग-रहित, साबुत या कटे हुए कन्द, वजन लगभग 30 ग्राम, कम से कम 2-3 आंखें हों, का प्रयोग करें। बुआई से पहले कन्दों को डाईथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल में 20 मिनट तक उपचारित करें। कंद को छाया में सुखाने के बाद अच्छी तरह से तैयार खेतों में 45-60 सेंटीमीटर पंक्तियों की दूरी एवं कंद को 15-20 सेंटीमीटर के अंतर पर पंक्ति में मेड़े बनाकर बिजाई करें। बिजाई से पहले 20 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 20 कि.ग्रा. इफको (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 5 कि.ग्रा. यूरिया प्रति बीघा अंतिम जुताई के समय खेतों में डालें। आलू की रोपाई के एक सप्ताह बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए ऑक्सीफ्लुराफेन 12 ग्राम प्रति बीघा या 3 से 4 सप्ताह बाद मेट्रीब्यूजीन 60 ग्राम प्रति बीघा (60 लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें। छिड़काव करते समय खेत में नमी होनी चाहिए। इसके अलावा आलू का 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामेक्सॉन 180 मिली लीटर प्रति बीघा (60 लीटर पानी) का छिड़काव किया जा सकता है।
इस समय खेत में पहले से लगी हुई सब्जियों फूलगोभी, बन्दगोभी, गाँठगोभी, ब्रॉकली, चाईनीज-बन्दगोभी, पालक, मेथी, मटर, प्याज व लहसुन इत्यादि में निराई-गुड़ाई करें तथा नाइट्रोजन के रूप में यूरिया 4 कि.ग्रा. प्रति बीघा निराई गुड़ाई करते हुए खेतों में डालें।
फसल संरक्षण:
सरसों वर्गीय तिलहनी फसलों में तेला यानि एफिड़ के नियंत्रण के लिए डाईमिथोएट 30 ई.सी. या ऑक्सीडेमेटोन मिथाईल 25 ई.सी. की 1.0 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। प्रभावी नियंत्रण के लिए एक बीघा में 60 लीटर घोल का छिड़काव अवश्य करें। छिड़काव सुबह 9.00 से पहले करें ताकि मधुमक्खी जैसे मित्र कीटों को क्षति न हो। साग वाली फसलों में इन कीटनाशकों का छिड़काव न करें।
गेहूँ की फसल में पीला रतुआ रोग जिसमें गेहूँ के पत्तों के उपर पीले रंग की दानेदार सीधी धारियों व दूसरी ओर पत्तों में धारीदार पीलापन दिखाई देता है जिससे प्रभावित पौधे बौने रह जाते हैं, दाने या तो बनते नहीं या छोटे व झुर्रीदार बनते हैं जिससे पैदावार प्रभावित होती है, के नियंत्रण के लिए गेहूं की फसल में टिल्ट- प्रापिकोनाजोल 25 ई.सी. या टैवुकोनाजोल 25 ईसी. या बेलाटॉन 25 डब्ल्यू.पी. का 0.1 प्रतिशत घोल यानि 60 मि.ली. दवाई 60 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा की दर से छिड़काव करें व 15 दिन के अन्तराल पर इसे फिर से दोहराएं।
पशुधन:
जनवरी महीने में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ने लगती है। पहाड़ी इलाकों में बर्फ़ तथा मैदानों में कोहरे तथा धुंध के कारण पशुओं की उत्पादन और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है इसीलिए पशुपालक इस मौसम में ठंड से बचाव से संबंधित प्रबंधन कार्य सम्पन्न करें। इस माह में पालतू पशुओं की देखभाल करने से संबंधित महत्वपूर्ण सुझावों में –अत्यधिक खराब मौसम में कृत्रिम रोशनी का प्रबंध करें । पशुओं को मोटे कपड़े या बोरों से ढकें एवं गुनगुना पानी पीने के लिए दें। पशुओं के शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए उन्हें खली और गुड़ का मिश्रण खिलाएं। गौशाला के फर्श पर सूखे पत्ते या घास को बिछाएं और खिड़कियों और दरवाजों को रात को मोटे बोरे से ढकें। सर्दियों में पशुओं के स्वास्थ्य की निगरानी रखें और किसी भी बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लें। सर्दी के मौसम में लगातार बर्फबारी या बारिश की स्थिति में पशुओं के लंबे समय तक गौशाला के अंदर रहने के कारण इनमें कई प्रकार की बीमारियां सामने आ सकती हैं जिनमें से कुछ संक्रामक रोग पशुओं के लिए घातक साबित हो सकते हैं। गौशाला का ठीक से हवादार न होने की स्थिति में एकत्रित गैसें जानवरों के फेफड़ों में जलन पैदा कर सकती है और निमोनिया जैसे श्वसन संक्रमण का कारण बन सकती है। भेड-बकरी में घातक संक्रामक रोग जेसे पीपीआर और बकरी पॉक्स हो सकते हैं। मवेशियों में खुरपका और मुंहपका रोग की संभावना हो सकती है। पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए उनका टीकाकरण पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार अवश्य करवाएं। इन महीनों में पशुओं को कई प्रकार के आंतरिक परजीवी जैसे : फैशिओला आदि के संक्रमण से बचाने के लिए उन्हे पशु चकित्सक की सलाह से परजीवी रोधी दवाई खिलाएं।
मछली पालक किसानों को सलाह दी जाती है कि तालाब में पानी की मात्रा का विशेष ध्यान रखें तथा समय-समय पर मछलियों की गतिविधियों पर भी नजर रखें। तालाबों के बांधों की मुरम्मतऔर नर्सरी की तैयारी प्रारम्भिक तौर पर शुरु कर देनी चाहिए। कॉमन कार्प ब्रूडर्स (नर और मादा) को चयनित करके उन्हे अलग-अलग तालाबों में एकत्रित करना प्रारंभ कर देना चाहिए। सर्दी के मौसम में मछली पालक किसान अपने तालाबों के पानी की गहराई छह फीट तक रखें ताकि मछली को गर्म स्थान (वार्मर जोन) में शीत-निद्रा के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। शाम के समय नलकूप से नियमित पानी डालकर सतह के पानी को गर्म रखा जा सकता है।
किसानों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक जानकारी हेतू कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरमौर से सम्पर्क में रहें। इसके अतिरिक्त कृषि संबधित अन्य विशिष्ट जानकारी के लिए प्रसार शिक्षा निदेशालय, पालमपुर के कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र से 01894 - 230395/ 1800 - 180 - 1551 पर भी सम्पर्क कर सकते हैं ।