नाहन : जोगन वाली का प्राचीन नील कंठ महादेव मंदिर..यहां भोलेनाथ मनोकामना पूर्ण करते हैं..

अक्स न्यूज लाइन नाहन 11 अगस्त :
अति प्राचीन प्राचीन स्वयंभू श्री नीलकंठ महादेव मंदिर जोगन वाली नाहन की तलहटी में स्थित है।यह आलौकिक शिवलिंग नाहन के जवाहर नवोदय विद्यालय के पास से शुरू हुए कोटड़ी लिंक रोड पर जुड़्डे का जोहड़ से लगभग एक किलोमीटर दूर है। मन्दिर के पास में ही शिव की नागकन्या मां मनसा देवी का भी अति प्राचीन मंदिर है।यह मंदिर शहर के धूम-धड़ाके से दूर एकांत स्थान पर है जहां पहुंचने पर अद्भुत शान्ति मिलती है।
यहां प्रायः हर सोमवार को भक्तों द्वारा जलाभिषेक करवाया जाता है। शिवरात्रि पर्व तथा श्रावण मास के सोमवारों पर तो यहां श्रृद्धालुओं की लम्बी कतारें लगी देखी जा सकती हैं। कालसर्प दोष निवारण तथा सोमवार उद्यापन के लिए अति उत्तम स्थान है।
इस मन्दिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है । मंदिर के परिसर में अति प्राचीन धूना स्थित है जो सदियों से चेतन स्वरूप में है। संभवतः सदियों पूर्व यहां कोई जोगिन तपस्या में लीन रहती थी जिसके कारण इस स्थान का नाम जोगन वाली पड़ा।
यहां पर विराजमान महात्मा बाबा हरिऊंगिरी जी इस मन्दिर के इतिहास को द्वापर युग से जोड़ते हुए बताते हैं कि पाण्डवों ने अपने अज्ञात वास का कुछ समय यहां शिव तपस्या में बिताया था। वह बताते हैं कि दसवीं शताब्दी में सिरमौर रियासत में हुई उथल-पुथल के समय भी यह मंदिर अस्तित्व में था। भू-स्खलन के कारण इस मंदिर का ढांचा , यहां स्थित आश्रम तथा अधोसरंचना
धरती में समा गया था। मन्दिर का शिवलिंग तथा गुम्बद कुछ अवशेष बाहर रह गए थे। जिन्हें लोग अनजाने मे ख्वाजा के पत्थर समझते थे।
अस्सी के दशक में यहां के स्थानीय निवासी हरिश्चंद्र सैनी अनजाने में शिवलिंग को छोड़कर मन्दिर के शिवलिंग को छोड़कर अन्य अवशेष अपने घर ले गए। इसके बाद उनका चहुंओर से नुकसान होना शुरू हो गया। जिससे दुखी होकर वह पण्डितों तथा गणना विशेषज्ञों के चक्करों में घूमता रहा। अन्ततः भगवान शिव ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं यहां नीलकंठ महादेव के रूप में स्थित हूं। आप उन्हीं व्यक्तियों द्वारा उन अवशेषों को पुनः वहां स्थापित कर श्री नीलकंठ महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण करवाओ। उन्होंने भगवान के निर्देश मानते हुए इस मन्दिर का नवनिर्माण किया । यहां इक्कीसवीं शताब्दी के शुरू में यहां के महात्मा को ध्यान अवस्था में यहां द्वापर युग की प्राचीन समाधियों का आभास हुआ तथा खुदाई करने पर यहां अति प्राचीन अवशेष मिले।
महात्मा हरिऊंगिरी बताते हैं कि यहां भोलेनाथ नीलकंठ रूप में विराजमान हैं। सतयुग में समुद्र मंथन में जब विष प्रकट हुआ तो भोलेनाथ ने उस विष का पान कर श्रष्टि की रक्षा की थी।
उन्होंने बताया कि यहां इस मन्दिर पुनः जीर्णोद्धार कार्य शीघ्र ही प्रारंभ किया जाएगा जिसमें श्रद्धालुओं की सुविधाओं को लेकर विशेष प्रयास किया जाएगा। इस मन्दिर का संरक्षण श्री गुरु दत्तात्रेय विजयतेतराम जी श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा वाराणसी द्वारा किया जाता है
भगवान भोलेनाथ यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूरी करते हैं।
सुभाष चन्द्र शर्मा
गांव खदरी डा बिक्रम बाग़ नाहन